🌍 वैश्विक प्रभाव: कीमतों में तीव्र गिरावट
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतों में तेजी से गिरावट देखी गई है—विशेष रूप से थाई व्हाइट चावल की कीमत लगभग $405 प्रति मीट्रिक टन पर पहुँच गई, जो जनवरी 2024 के $669 से काफी नीचे है।
भारत का चावल निर्यात तेज़ी से बढ़ा—2024‑25 के दौरान भारत 22.5 मिलियन मीट्रिक टन तक चावल निर्यात करने की राह पर है।
🇮🇳 भारत का रणनीतिक कदम: बनाम संकट से समृद्धि तक
- सरकारी गोदामों में अत्यधिक स्टॉक
जून 2025 तक FCI के पास चावल एवं धान का स्टॉक लगभग 63 मिलियन टन, जो buffer requirement के कई गुना अधिक था। - ईंधन विकल्प के रूप में एथेनॉल उपयोग बढ़ाया गया
सरकार ने 5.2 मिलियन टन अतिरिक्त चावल को एथेनॉल उत्पादन हेतु आवंटित किया, जिससे स्टॉक खत्म हुए और ईंधन मिश्रण लक्ष्य (~20%) की ओर यातायात सुचारू हुआ। - निर्यात प्रतिबंधों में क्रमिक ढील
2022 से पराबंध लगने के बाद, 2024 से ही non‑basmati white rice और broken rice के निर्यात पर नजरअंदाज़ी शुरू हुई—पहले MEP हटाया गया, फिर प्रतिबंध समाप्त हुआ।
📉 कीमतों पर प्रभाव का सारांश
प्रभाव क्षेत्र विवरण
विश्व बाज़ार की कीमतें 2025 में लगभग 30% तक गिरावट; थाई बीज मूल्य ~$405 / MT (जनवरी 2024 से)
रूसी, वियतनाम, पाकिस्तान प्रभावित भारतीय कीमतों ने वैश्विक प्रतिस्पर्धी देशों के बाज़ार हिस्से पर दबाव डाला
भारत की निर्यात क्षमता अनुमानित ~22.5 मिलियन टन तक निर्यात, वैश्विक हिस्सेदारी ~40–55% तक
एथेनॉल में चावल उपयोग उत्पादन अधिक होने पर ~9% चावल का उपयोग ईंधन मिश्रण में
वैश्विक आपूर्ति–मांग संतुलन FAO अनुमानित 2024‑25 में आपूर्ति ≈743 MT; मांग ≈539 MT — ओवरसप्लस स्थिति
💡 लाभ और भारतीय रणनीति
अधिक निर्यात किसानों की आय बढ़ाने में सहायक; global market में भारत की हिस्सेदारी मजबूत।
कीमतों का स्थिरीकरण: एफिसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति और मूल्य मंजूरी के कारण गिरावट की सीमा सीमित रही।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर: उत्पादन व खरीद क्षमता में वृद्धि से किसानों को लाभ, जबकि वैश्विक कीमतों में गिरावट उपभोक्ता-देशों के लिए फायदे की बात है।