MP के किसान ‘खाद के आंसू’ क्यों रोए

मध्य प्रदेश के किसान इन दिनों ‘खाद के आंसू’ रोने को मजबूर हैं। इस मार्मिक और प्रतीकात्मक वाक्य का तात्पर्य है कि खाद (fertilizer) की भारी किल्लत और उससे जुड़ी लंबी लाइनें, अव्यवस्था और कालाबाज़ारी ने किसानों की हालत बद से बदतर कर दी है।


🌾 समस्या की जड़:

  1. DAP और यूरिया की भारी किल्लत
    – खरीफ सीजन की बुवाई के बाद, खाद की मांग ज़ोरों पर है।
    – लेकिन दुकानों पर या तो खाद नहीं मिल रही, या बहुत कम मात्रा में मिल रही है।
  2. कई जिलों में लंबी लाइनें
    – किसानों को रातभर कतार में खड़ा होना पड़ रहा है।
    – बुजुर्ग और महिलाएं भी लाइन में दिख रही हैं, लेकिन फिर भी खाद नहीं मिल पा रही।
  3. कालाबाज़ारी और दलाली
    – कुछ जगहों पर खाद ब्लैक में 2-3 गुना दाम पर बेची जा रही है।
    – बिना “भूमि रिकॉर्ड” या “समग्र आईडी” के किसानों को खाद नहीं दी जा रही, जिससे असली जरूरतमंद वंचित रह जा रहे हैं।

😢 किसानों का दर्द:

“खाद नहीं तो फसल नहीं, फसल नहीं तो घर कैसे चले?”

कुछ किसानों ने भूख हड़ताल तक की घोषणा की है।

Also Read

कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन, ज्ञापन और दुकानों के सामने हंगामा हुआ है।


🏛 सरकार की प्रतिक्रिया:

राज्य सरकार ने दावा किया है कि पर्याप्त खाद उपलब्ध है, बस वितरण में कुछ अस्थायी दिक्कतें हैं।

Also Read

अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे काला बाज़ारी पर सख्त कार्रवाई करें और किसानों को बिना परेशानी खाद मिले।


📉 असर:

यदि यह संकट जल्दी हल नहीं होता, तो फसल उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा।

इससे न केवल किसान, बल्कि पूरी आर्थिक प्रणाली और खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।

Top Stories
Related Post