न्यूज़ रिपोर्ट
हेडलाइन:
राम रहीम 40‑दिन की पैरोल पर जेल से आया बाहर, यह 2017 के बाद 14वीं बार मिली अस्थायी रिहाई
स्थान: चंडीगढ़ / रोहतक / सिरसा | तिथि: 5 अगस्त 2025
📌 मुख्य वाक्यांश:
गुरमीत राम रहीम सिंह, जो दो अनुयायिकाओं के साथ दुष्कर्म और एक पत्रकार की हत्या के आरोपों में दोषी पाए गए थे, उन्हें 40‑दिन की पैरोल दी गई और वे सुनारिया जेल, रोहतक से रिहा हो गए हैं। यह उनकी 14वीं अस्थायी रिहाई है, जो 2017 से मिली है ।
🔔 रिहाई की विशेषताएं:
यह पैरोल मध्य सितंबर तक चलेगी, इसके बाद उन्हें फिर से जेल लौटना होगा, अनुमानतः 14 सितंबर तक ।
राम रहीम सुबह-सुबह जेल से निकले और पुलिस सुरक्षा के बीच सिरसा स्थित अपने डेरा मुख्यालय पहुँचे ।
📅 पिछली अस्थायी रिहाइयाँ एवं पैटर्न:
अप्रैल 2025 में उन्हें 21‑दिन की फर्लो दी गई थी।
जनवरी 2025 में 30‑दिन की पैरोल मिली थी, जो दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दी गई थी।
अक्टूबर 2024 समेत कई चुनावों से पहले भी उन्हें पैरोल या फर्लो दिया गया था — इस वर्ष भी पहले दो बार अस्थायी रिहाई मिली है ।
अब तक उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 326 दिन जेल से बाहर बिताए हैं ।
⚖️ डॉ. राम रहीम पर आरोप और सजा:
अगस्त 2017 में एक विशेष CBI कोर्ट ने उन्हें दो अनुयायिकाओं के साथ दुष्कर्म के लिए दोषी ठहराया और 20 साल की जेल सजा सुनाई ।
जनवरी 2019 में पत्रकार राम चंदर छतरपाटी की हत्या का दोषी करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई ।
हालाँकि मई 2024 में हाई कोर्ट ने रंजीत सिंह हत्या मामले में उनकी और अन्य की अदालत में सफाई पाए जाने पर बरी कर दिया ।
🤔 वैचारिक और सामाजिक प्रभावितताएँ:
अक्सर राजनीतिक चुनावों से पहले राम रहीम को देते जाने वाले पैरोल से सवाल उठ रहे हैं; आलोचकों का आरोप है कि यह चुनावी रणनीति से प्रेरित है, क्योंकि उनके अनुयायकों की संख्या कई राज्यों में महत्वपूर्ण मानी जाती है ।
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2025 में एक पीआईएल को खारिज करते हुए कहा कि व्यक्तिगत मामले के लिए पैरोल चुनौतीबद्ध करना कानूनन सीमित है ।
🧾 रिपोर्ट सारांश (थोड़ा संक्षेप):
बिंदु विवरण
रिहाई 40‑दिन की पैरोल (5 अगस्त 2025 से)
पिछली रिहाइयाँ 21‑दिन अप्रैल में, 30‑दिन जनवरी में, अन्य चुनावी मौकों पर
मुकदमें 2017 में 20 साल की सजा (दुष्कर्म), 2019 में जीवन कारावास (हत्या)
वापसी तिथि अनुमानतः 14 सितंबर 2025
सामाजिक प्रभाव चुनाव प्रचार या अनुयायकों पर विचार, न्यायिक समीक्षा में सार्वजनिक आलोचना