सुप्रीम कोर्ट ने बिजली बिलों में संभावित वृद्धि के लिए “ग्रीन सिग्नल” जैसा आदेश दिया है जिसे जानना ज़रूरी है।
आदेश का सार
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के साथ लंबित “रैगुलेटरी एसेट्स” (Regulatory Assets) को अगले चार वर्षों (अप्रैल 2024 से अप्रैल 2028 तक) में चुकाने का रोडमैप तैयार करें और उसे लागू करें।
ये Regulatory Assets वे लंबित भुगतान होते हैं जो डिस्कॉम्स को राज्यों या विद्युत नियामक आयोगों से मिलते हैं, क्योंकि अक्सर वास्तविक बिजली लागत को तत्काल उपभोक्ता बिलों में नहीं डाला जाता—जिसके कारण यह बोझ समय के साथ बढ़ता जाता है।
उपभोक्ताओं पर असर (बिजली बिल में बढ़ोतरी)
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि इन बकाया राशिों का बोझ सीधे-सीधे उपभोक्ताओं पर डालना नहीं चाहिए, लेकिन लागत की वसूली के लिए संयमित और चरणबद्ध तरीके से बिजली दरें बढ़ाई जा सकती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, बिजली बिलों में अचानक भारी वृद्धि की संभावना नहीं—लेकिन धीरे-धीरे मामूली बढ़ोतरी संभव है, जिसे सब्सिडी, सर्ज चार्ज या नियामकीय संशोधनों के ज़रिए नियमित किया जा सकता है।
निष्कर्ष — क्या बिजली रेट्स बढ़ सकते हैं?
हाँ, संभावना है:
राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा बकाया राशि की वसूली को लेकर बिलों में धीमी और नियंत्रित वृद्धि की जा सकती है।
यह वृद्धि सभी उपभोक्ता वर्गों (घरेलू, वाणिज्यिक, औद्योगिक) में चरणबद्ध रूप से हो सकती है—न कि एकदम अचानक।